Thursday, February 11, 2010

एक कहानी [कड़ी ४ ]

रात के आठ बज रहे थे । नानी और माँ रसोई में थी। दरवाजे पर दस्तक हुई । नानी ने कहा -लगता हे ओंकार आगया दूकान से । ओंकार गुगी के मामाजी ,जिनसे नानी की लाडली डरा करती थी । जब मामाजी घर में दाखिल हुए, तो वोह गलियारे में बैठी ठंडी -ठंडी हवा का आनंद ले रही थी । दिन चाहे कितने ही गर्म रहे , लेकिन राते ठंडी रहती है यहाँ की । माँ ने आवाज लगायी - सन्नो आ बेटा ,नीचे आ , आके मामा के हाथ -पैर धुलवा । सन्नो जी हाँ यही तो उसका नाम है , इसी नाम से वह अपने ननिहाल में और अपने दादा दादी के यहाँ जानी जाती है । सन्नो आज बहुत थकी हुई हे , बन्दर महाराज ने आज उससे इतनी दौड़ -धुप करवा दी की अब उससे एक कदम भी न चला जाएगा । माँ आवाज लगाती रही ,पर उसने सुना-अनसुना कर दिया और बैठे -बैठे आकाश में टिमटिमाते हुए तारो को गिनने लगी । अचानक एक कर्कश -कठोर आवाज उसके कानो को चीरती हुए उसे अन्दर तक हिला गयी । उसका बदन डर से काँप रहा था । यह तो ओंकार मामाजी की आवाज थी । सन्नो नीचे आ , आखिर सन्नो को अपना मन मारकर नीचे जाना ही पड़ा ।
क्या करती रहती है सारा दिन, कभी कुछ काम भी कर लिया कर । मामाजी ने सन्नो को देखते ही पहला सवाल यही किया । नानी और माँ दोनों चुपचाप एक कोने में खडी सन्नो को देख रही थी । सन्नो ने मुड़कर दोनों की तरफ देखा पर नानी और माँ भी मामाजी के आगे कुछ नहीं बोल पाती थी । खड़े -खड़े क्या देख रही है चल मेरे हाथ पैर धुलवा । अपने आँख में आंसू को छुपाती हुई,मामा के पैर धुलवाने के लिए जल बाल्टी में भरने लगी । जाते - जाते मामाजी एक और फरमान सुना गए - सन्नो से बोलो मेरे लिए दो जवार की रोटी बना कर रखे में कपडे बदल कर आता हु । नानी बोली - बेटा में बना देती हूँ । लेकिन मामाजी की जिद के आगे किसी की नहीं चलती । आखिरकार सन्नो को रोटी बनानी ही पड़ी । उसे कहा कुछ बनाना आता था । पर जैसे -तैसे उसने रोटिया बनायीं । रोटिया बनाते वक़्त हाथो की उंगलियाँ गरम तवे से चीठ गयी । जब सब का खाना हो गया और सारा रसोई का काम सलट गया तो माँ उसे कमरे में ले गयी और उसकी जली उँगलियों पर मलहम लगाई । माँ की गोद में सर रखकर वह सो गयी

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