आज बहुत समय के बाद आप सभी के समक्ष उपस्थित हूँ,
एक और रचना के साथ..पर ये रचना मेरी नहीं मेरे छोटे भाई
की हैं ..वो भी लिखते हैं ..पर इन दिनों व्यस्तता के चलते लिख नहीं
पाते हैं ....आज उनकी बहुत पहले लिखी कविता आप सभी के साथ
बांटना चाहती हूँ । मुझे पूरी उम्मीद हैं आपको ये कविता जरुर पसंद
आएगी ।
दो अक्षर का मेल हैं घर,
परिवार के लोगों का मिलन हैं घर।
सुख और शान्ति जहाँ मिले,
उस जगह का नाम हैं घर ।
थक कर जहाँ मिले आराम,
वह कहलाता हैं घर ।
घर नहीं केवल एक मकान,
नहीं ईंट और मिटटी से बनी ईमारत शानदार।
राजा का महल नहीं,
ना गरीब की कुटीया हैं घर,
तो फिर घर क्या हैं ?
जहाँ परिवार के साथ रह पाए ,
सुख -दुःख एक दुसरे के बांटते जाए।
जिससे हम न रह सके दूर,
जिसके बिना न रहे आँखों मैं नूर ।
उस स्वर्ग का नाम हैं घर।
चलो इस दुनिया को घर बनाये,
हिंसा को इस जग से हटाये।
भाई -भाई की तरह गले मिल जाए,
चेहरे पे सबके खुशियाँ लौटा लाये।
Wednesday, November 30, 2011
Saturday, July 23, 2011
मुंबई की बरसात
यह मुंबई की बरसात हैं।
यह मुंबई की बरसात हैं।
किसी के लिए सौगात खुशियों की,
तो कही मुसीबत की मार हैं।
यह मुंबई की बरसात हैं ।
कोई मोती की इन बूंदों से खेले,
कोई अपनी टपकती छत को देखे।
किसी के लिए मौसम खुशगवार हैं,
तो किसी के लिए परेशानी की धार हैं।
यह मुंबई की बरसात हैं ।
यह मुंबई की बरसात हैं ।
कही लोकल ठप्प हैं,
कही सडको पर जाम हैं।
अनगिनत गड्ढो से बिगड़ते हरदम हालत हैं
फिर भी मुस्कुराकर मुंबईकर,
हर मुसीबत से लड़ने को तैयार हैं।
यह मुंबई की बरसात हैं।
यह मुंबई की बरसात हैं।
यह मुंबई की बरसात हैं।
किसी के लिए सौगात खुशियों की,
तो कही मुसीबत की मार हैं।
यह मुंबई की बरसात हैं ।
कोई मोती की इन बूंदों से खेले,
कोई अपनी टपकती छत को देखे।
किसी के लिए मौसम खुशगवार हैं,
तो किसी के लिए परेशानी की धार हैं।
यह मुंबई की बरसात हैं ।
यह मुंबई की बरसात हैं ।
कही लोकल ठप्प हैं,
कही सडको पर जाम हैं।
अनगिनत गड्ढो से बिगड़ते हरदम हालत हैं
फिर भी मुस्कुराकर मुंबईकर,
हर मुसीबत से लड़ने को तैयार हैं।
यह मुंबई की बरसात हैं।
यह मुंबई की बरसात हैं।
Monday, May 16, 2011
धर्म
राम,अल्लाह, नानक, येशु और साईं,
यह सब ही हैं सर्व शक्तिमान।
कभी नहीं करते हैं यह,
आपस में कोई भेद -भाव ।
पर इनके बन्दे हम इन्सान,
कब समझ पायेंगे यह बात।
कोई धर्म न नीचा होता हैं न ऊंचा,
सारे ही होते हैं एक समान।
लड़ो न तुम आपस में,
न बढाओ तुम कोई विवाद ।
चाहे मंदिर बने या मस्जिद रहे,
इससे क्या फर्क पड़ता हैं ।
हर पूजा या इबादत का स्थान,
हमेशा ही पवित्र होता हैं .
यह सब ही हैं सर्व शक्तिमान।
कभी नहीं करते हैं यह,
आपस में कोई भेद -भाव ।
पर इनके बन्दे हम इन्सान,
कब समझ पायेंगे यह बात।
कोई धर्म न नीचा होता हैं न ऊंचा,
सारे ही होते हैं एक समान।
लड़ो न तुम आपस में,
न बढाओ तुम कोई विवाद ।
चाहे मंदिर बने या मस्जिद रहे,
इससे क्या फर्क पड़ता हैं ।
हर पूजा या इबादत का स्थान,
हमेशा ही पवित्र होता हैं .
Wednesday, March 2, 2011
महाशिवरात्रि के इस पावन पर्व पर,
सभी शिव-भक्त को महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनएँ
एक छोटा सा भजन इस पावन मौके पर।
जीवन सार्थक करे शिव का नाम।
शिव-चरण बिन कहाँ विश्राम॥
हर -हर महादेव नाम का करो स्नान,
शिव-चरण बिन कहाँ विश्राम।
जीवन सार्थक करे शिव का नाम।
शिव-चरण बिन कहाँ विश्राम॥
डमरू की डम-डम मे शम्भो नाम,
शिव -चरण बिन कहाँ विश्राम।
जीवन सार्थक करे शिव का नाम।
शिव -चरण बिन कहाँ विश्राम ॥
गंगा की धार बोले शंकर नाम,
शिव-चरण बिन कहाँ विश्राम।
जीवन सार्थक करे शिव का नाम।
शिव -चरण बिन कहाँ विश्राम॥
तुम्ही गुरु,तुम्ही परमपिता,
शिव -चरण बिन कहाँ विश्राम।
जीवन सार्थक करे शिव का नाम।
शिव -चरण बिन कहाँ विश्राम॥
ॐकार नाम से गूंजे सारा संसार,
शिव -चरण बिन कहाँ विश्राम।
जीवन सार्थक करे शिव का नाम।
शिव -चरण बिन कहाँ विश्राम॥
तीन लोक मे तेरी जय -जयकार,
शिव -चरण बिन कहाँ विश्राम।
जीवन -सार्थक करे शिव का नाम।
शिव -चरण बिन कहाँ विश्राम॥
सभी शिव-भक्त को महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनएँ
एक छोटा सा भजन इस पावन मौके पर।
जीवन सार्थक करे शिव का नाम।
शिव-चरण बिन कहाँ विश्राम॥
हर -हर महादेव नाम का करो स्नान,
शिव-चरण बिन कहाँ विश्राम।
जीवन सार्थक करे शिव का नाम।
शिव-चरण बिन कहाँ विश्राम॥
डमरू की डम-डम मे शम्भो नाम,
शिव -चरण बिन कहाँ विश्राम।
जीवन सार्थक करे शिव का नाम।
शिव -चरण बिन कहाँ विश्राम ॥
गंगा की धार बोले शंकर नाम,
शिव-चरण बिन कहाँ विश्राम।
जीवन सार्थक करे शिव का नाम।
शिव -चरण बिन कहाँ विश्राम॥
तुम्ही गुरु,तुम्ही परमपिता,
शिव -चरण बिन कहाँ विश्राम।
जीवन सार्थक करे शिव का नाम।
शिव -चरण बिन कहाँ विश्राम॥
ॐकार नाम से गूंजे सारा संसार,
शिव -चरण बिन कहाँ विश्राम।
जीवन सार्थक करे शिव का नाम।
शिव -चरण बिन कहाँ विश्राम॥
तीन लोक मे तेरी जय -जयकार,
शिव -चरण बिन कहाँ विश्राम।
जीवन -सार्थक करे शिव का नाम।
शिव -चरण बिन कहाँ विश्राम॥
Monday, February 7, 2011
अरमान
सीने मैं जब्त कर रखे हैं,
अरमान कई मैंने अपने।
जुबा खोल दू तो ये,
कही खाक मैं मिल न जाये।
जमाना जान जाता हैं कैसे,
बंद जुबा की ये बातें।
नश्तर चुभो -चुभो कर इसे,
घायल ही करता जाये।
दिल के किसी तह मैं,
छुपा लिया हैं इसको मैंने ।
मासूम सी यह चाह मेरी,
कही टूट कर बिखर ना जाये।
अरमान कई मैंने अपने।
जुबा खोल दू तो ये,
कही खाक मैं मिल न जाये।
जमाना जान जाता हैं कैसे,
बंद जुबा की ये बातें।
नश्तर चुभो -चुभो कर इसे,
घायल ही करता जाये।
दिल के किसी तह मैं,
छुपा लिया हैं इसको मैंने ।
मासूम सी यह चाह मेरी,
कही टूट कर बिखर ना जाये।
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