Friday, January 29, 2010

इंतज़ार

मैंने जो" एक कहानी " की शुरुआत की है , उसका अगला भाग ,आप लोग अगले हफ्ते पढ़ पायेंगे । तो निराश मत होइए और अगली कड़ी का इंतज़ार करिए ।

Thursday, January 28, 2010

टेलीविजन की दुनिया उफ़ यह हंगामे

शुरुआत में हमारे पास मनोरंजन का एकमात्र साधन था और वो था दिल्ली दूरदर्शन से प्रसारित होने वाले कार्यक्राम । उस वक़्त कोई और विकल्प भी नहीं था , तो , वो ही हमारे मनोरंजन का सहारा बना।
धीरे -धीरे समय बदला और देश में मनोरंजन के क्षेत्र में नयी क्रान्ति आयी । दौर आया प्राइवेट चैनलों का । जिसकी शुरुआत हुई जी टी वी से , उसके बाद तो जैसे सैलाब ही उमड़ पड़ा हो प्राइवेट चैनलों का, इंटरटेनमेंट चैनल हो या फिर न्यूज़ चैनल । हमारे मनोरंजन का दायरा बढ़ता गया । पहले फिल्मे और धारावाहिक दिखाये जाने लगे , बाद में रिअलिटी शो भी आने लगे । रिअलिटी शो के साथ शुरू हुए हंगामे। इन सब चीजो से उस समय मैं बड़ी अनजान थी ।
इसका सबसे पहला अनुभव मेरा सन १९९३ मैं हुआ । जी टी वी पर एक परिचर्चा पर आधारित कार्यक्रम की शुरुआत हुई जिसका नाम था ' चक्रव्यूह ' और इस कार्यक्रम का संचालन जाने -माने पत्रकार विनोद दुआ जी करते थे ।
एक बार डॉक्टरस के उपर एक परिचर्चा रखी गयी । पैनल पर चार पांच मेहमानों को बुलाया गया था , जिसमे से एक प्रसिद्ध हृदयरोग विशेषज्ञ थे जो एक जाने माने बॉलीवुड अभिनेता चंकी पांडे के पिताजी भी थे । परिचर्चा की शुरुआत तो शांत तरीके से हुई ,धीरे -धीरे परिचर्चा का दौर आगे बढ़ता गया ,स्टूडियो मैं बैठे श्रोतागण अपने विचार बता रहे थे । ज्यादातर श्रोताओ के अनुभव डॉक्टर के प्रति मधुर नहीं थे । लोगो के अनुभव सुनकर वो बॉलीवुड अभिनेता के पिताजी नाराज़ हो गए ,चेहरा क्रोध से लाल हो गया । आगे तो वो किसी की सुनना ही नहीं चाहते थे. और इस विवाद मैं उनका भरपूर साथ दिया पैनल मैं बैठे एक और मेहमान जो अहमदाबाद से आये थे । दोनों ने मिलकर माहौल को इतना गरमा दिया की बीच मैं ही कार्यक्रम को रोकना पड़ा । और वो दोनों मेहमान चिल्लाते हुए कार्यक्रम छोड़कर चले गए । आज वोह हृदयरोग विशेषज्ञ डॉक्टर इस दुनिया मैं नहीं है । भगवान् उनकी आत्मा को शान्ति प्रदान करे । अब तो टेलीवीजन की दुनिया में यह नज़ारे देखना आम बात हो गयी है । म्यूजिक शो सा रे गा मा पा में शुरुआत हुई थी संगीत के विश्व युद्ध की प्रथम ,द्वितीय शायद तृतीय भी हुआ था । मैंने तो संगीत का प्रथम विश्व युद्ध देखा सच पूछो तो प्रतियोगियों का आपस मैं युद्ध नहीं था , पर उन प्रतियोगियों ,को जो जज करने आये संगीत के क्षेत्र के महारथियों का आपस में जरुर वाद -विवाद होता रहता था , तमाशा ही तमाशा होता रहता था । और किसी रिअलिटी शो में प्रतियोगी रो -रो कर आंसुओ का समंदर तैयार कर देते हे । जिसको देखकर मैं यही कह सकती हु "यह कैसा ईमोशनल अत्याचार है"। खुदा बचाए ऐसे टेलीविजन की दुनिया से और उफ़ यह हंगामे से ।

Wednesday, January 27, 2010

एक कहानी

यह कहानी है राजस्थान मैं बसे,एक छोटे से गाँव गंधार की । बात बहुत पुरानी है ,पर सच्ची है ,जिसके बारे मैं बताने जा रही हूँ उसका इस जगह से संबंद्ध है । यह जगह उसकी ननिहाल थी , अपनी माँ के साथ हमेशा छुटीयों मैं आती थी । ,नानी के यहाँ जाना है यह सुनते ही वह ख़ुशी से उछल पड़ती थी । अब जरा उसकी नानी के घर के बारे मैं जान ले । नानी का घर एक बहुत बड़ी हवेली थी जिसका आकर अंग्रेजी के एल आकर जैसा था ,जिसका एक हिस्सा पक्का था और दूसरा काची माटी का था । जो हीस्सा कच्चा था उसके पिछवाड़े एक इमली का पैड था जिसकी शाखाएं उस हिस्से की गच्ची तक फ़ैली हुई थी । उस गच्ची पर बारिश के कारण जो काई जमती थी उस पर मखमली घास उग आती थी। सीमेंट की एक बेंच भी थी। जब बच्चे पकड़ा -पकड़ी खेलते हुए थक जाते थे ,तब इसी सीमेंट की बेंच पर बैठकर अपनी थकान उतारते थे । हवेली जहाँ स्थित थी उस सड़क का नाम मन -मोगरा था गाँव के रास्ते छोटे -छोटे पत्थरों से बने थे ।
आज फिर वोह अपनी नानी के यहाँ जा रही है । स्टेशन पर उतरकर बैलगाड़ी का इन्तजार हो रहा है । जब तक की बैलगाड़ी आये, पास ही एक मंदिर है जहाँ पर भगवान् के दरशन किया जा रहा है । मंदिर के आहाते मैं बहुत सारे मौसंबी के वृक्ष है । लो बैलगाडी आगई । गंधार पहुचने के लिए दो रास्ते हैं एक तो बैलगाड़ी का दूसरा नाव का जो कालीसिंध नदी को पार कर के जाना पड़ता है । पर अब सांझ हो गयी है , इसलिए बैलगाड़ी से जाना ही सुरक्षित है । वोह बैठ गयी है बैलगाड़ी मैं अपनी नानी से मिलने को है बेकरार । चली जा रही है गाडी उचे -नीचे रास्ते से होते हुए अपनी मंजिल तक ।

बचपन की गलियां

बचपन की गलियों से हर कोई गुजरता है । खुबसूरत राहो मैं हर कोई विचरता है । जैसे -जैसे उमर बढती चली जाती है। यथार्थ की दुनिया मैं हमे लिए जाती है । अब तो बचपन खवाबो -खयालो मैं बसा है । सुनहरी किताब मैं इन लम्हों को संजोया है ।

Thursday, January 21, 2010

बेवकूफी या नादानी

वैसे तो हम अपनी जिन्दगी मैं हर पल ऐसे कुछ काम कर जाते हैं, जिसे बाद मैं सोचकर हमें बरबस हंसी आ जाती हैं । बात तब की हैं जब मैं चौथी कक्षा की छात्रा थी । हमारी कक्षा मैं विनायक नाम का लड़का पढता था जिसे अपने पिताजी के ओहदे का बड़ा गुमान था । हर वक़्त वोह अपनी मनमर्जी करता था कोई भी उससे कुछ ना कहता था । हमारी अध्यापिका को कीसी विशेष काम से एक दिन कक्षा से बाहर जाना पड़ा,तो कक्षा का मोनिटर विनायक को बनाया । मौका मिलने की देरी थी विनायक ने फिर अपनी मनमर्जी शुरू करदी उसने कहा कोई भी न बोलेगा और न ही हिलेगा सब ऐसे बैठो जैसे की एक मूर्ति बैठी हो । मैं भी कुछ देर तक उसके बताये तरीके से बैठी रही । बैठे -बैठे मुझे दर्द होने लगा क्यूंकि मुझे पोलियो हैं मेरे पुरे शारीर पर पोलियो का असर हैं ,तो मैं थोडा हिल गयी । उसने देख लिया और उसने आकर मेरे सर पर रुलर से मारा । मैंने कुछ नहीं बोला जब मम्मी मुझे लेने आई तब स्कूल छुटने मैं पांच दस मिनट की देरी थी मम्मी ने अध्यापिका जी से इजाजत लेकर मुझे स्कूल से ले गयी जब मम्मी मुझे लेकर स्कूल के गेट तक पहुंची तो मैंने उनको सब बात बताई । मम्मी ने बोला तू ने मुझे पहले क्यूँ नहीं बताया । मम्मी तुरंत कक्षा मैं लौटी हमको वापिस कक्षा मैं आया देख विनायक के चेहरे के भाव बदल गए उसे अपनी बात के पकडे जाने का भय था । मम्मी ने जब टीचर को सारी बात बतायी तो टीचर ने विनायक से पुछा तो विनायक ने फट से सारा इलज़ाम दुसरे लड़के आशीष पर लगा दिया । टीचर ने बेचारे आशीष को मुर्गा बना दिया , और मैं चुचाप उसको मुर्गा बना देखती रही और मम्मी के साथ घर लौट आई । आज भी इस बात को याद करती हूँ तो अपनी बेवकूफी पर हंसी भी आती हैं और अफसोस भी होता है

Friday, January 15, 2010

सूर्य grahan

आज सबसे बड़ा सूर्यग्रहण है । मैं अभी सूर्य ग्रहण के ख़त्म होने का इंतज़ार कर रही हूँ । आज मेरी माँ ने हमारी कामवाली को घर के अंदर नहीं आने दिया । खुद ने ही घर का सब काम कर लिया , मैंने माँ को बोला अरे कामवाली को तो आने दो ,तो माँ बोलती है वोह ग्रहण शुरू होने पर आई है स्नान किया नहीं है कैसे आने दू । आज माँ ने सुबह से कुछ नहीं खाया अब ग्रहण के शुद्ध होने पर ही खायेंगी ,बाकी घर के लोगो को ग्रहण शुरू होने से पहले खिला दिया । लोग कब तक ऐसे अन्धविश्वाश पर कायम रहेंगे । वैसे माँ पूरी तरह से रुढ़िवादी नहीं है, हां पर कभी -कभी उनके ऊपर ऐसे पुरानी मान्यता यदा कदा हावी हो जाती है । जमाना आगे बढ़ चूका है नयी उपलब्धिया को हमने प्राप्त किया है
मेरी मासी तो बहुत ज्यादा ही रुदिवादी है । उन्होंने तो सूर्यग्रहण की पिछली रात ग्यारह बजे के बाद से लेकर सूर्यग्रहण के ख़त्म होने के तीन चार घंटे बाद भी कुछ नहीं खाया जिसकी वजह से उन्हें एसिडिटी हो गयी और बहुत उल्टिया शुरू हो गयी
कितनी भी तबियत खराब हो जाये मेरी मासी आपनी सोच बदल नहीं सकती । इसके लिए मैं एक ही कहावत कह सकती हूँ । भैंस के आगे बीन बजने से क्या फायदा ।