जभी दिल पर बढ़ जाता हैं पाप का बोझ,
चल पड़ते हैं सभी गंगा की और.
सोचा मैंने भी जाऊं मैं वहां, जहाँ जाते हैं सभी,
जीते जी या फिर कर के देह को त्याग.
ज्यूँ ही पंहुचा .....ठिठक गए मेरे कदम,
देख के एक दृश्य असामान्य.
एक मोटी सी काली स्याह चादर में,
लिपटी थी वो उज्जवल पावन लहर,
और थे उस पर छितरे दूर -दूर तक
इंसानी ढाचों के अवशेष.
पास जाके सुना तो एक दबी सी
आवाज़ आई.
हटा दो ....हटा दो....इस चादर को मुझ पर से
मैं हूँ तुम्हारी जीवनदायिनी.
चल पड़ते हैं सभी गंगा की और.
सोचा मैंने भी जाऊं मैं वहां, जहाँ जाते हैं सभी,
जीते जी या फिर कर के देह को त्याग.
ज्यूँ ही पंहुचा .....ठिठक गए मेरे कदम,
देख के एक दृश्य असामान्य.
एक मोटी सी काली स्याह चादर में,
लिपटी थी वो उज्जवल पावन लहर,
और थे उस पर छितरे दूर -दूर तक
इंसानी ढाचों के अवशेष.
पास जाके सुना तो एक दबी सी
आवाज़ आई.
हटा दो ....हटा दो....इस चादर को मुझ पर से
मैं हूँ तुम्हारी जीवनदायिनी.