Wednesday, February 10, 2010

एक कहानी [कड़ी ३ ]

जब जब छुटियाँ होती थी नानी के यहाँ आने की अनुभूति कुछ और ही होती थी । गर्मी की एक दुपहर मे वोह अपनी नानी के साथ उनके कमरे मे थी । नानी उसके बालो मे तेल लगा रही थी । नानी ने कहा - तेरे इतने अच्छे केश हैं तेल लगाया कर , नहीं तो छोटी उम्रर मे मेरी तरह बाल सफ़ेद हो जायेंगे । उसने कहा - अरे वाह नानी तब तो बड़ा मजा आएगा मेरे बाल भी तुम्हारी तरह चांदी की तरह चमकीले हो जायेंगे । कमरे मे बैठी नानी, उसकी माँ सब हँसने लगे । सबको हँसते देखकर वोह भी खिलखिलाकर हँस पड़ी । उसकी हँसी चारो और गूंज उठी । माँ उसको हँसता देख भगवान् से बस एक ही प्रार्थना करती की ,हे ईश्वर मेरी बेटी सदा युही मुस्कुराती रहे । अचानक हुए शोर से उसकी माँ एकदम चौंक पड़ी । सब एक बन्दर को भागने की कोशिश कर रहे थे । कभी वो बन्दर नानी के कपाट पर चढ़ जाता तो कभी कमरे के एक कोने में टंगे हुए झूले पर चढ़ जाता और मजे से उस पर झूलने लगता । नानी ने एक डंडा उठाया और लगी बन्दर को भगाने । बन्दर महाराज खी-खी करते हुए नानी को चिढा रहे थे। आखिर बहुत कोशिशो के बाद बन्दर को भगाया गया । लेकिन जाते - जाते बन्दर नानी का प्यारा आईना ले गया ,जो एक चांदी की फ्रेम में जड़ा हुआ था नानी को इस बात का दुःख था की यह उनके पति की उनको आखरी भेंट थी । उसके थोड़े दिनों बाद ही उनका स्वर्गवास हो गया था । शाम ढलने लगी थी सूरज की लालिमा से आसमान सजने लगा था । नानी कमरे में बिखरे सामन को समेटने लगी

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