Wednesday, April 28, 2010

राम और खुदा [कविता ]



बेगुन्हा लाशों को कंधे पर डाले ।
चले है राम और खुदा उन्हें दफनाने ॥

मंदिर , मस्जिद आशियाँ हुआ करते थे ।
आज भटक रहे है वीरानो में ॥

दिल से निकाल फेंका है लोगों ने हमको ।
अब तो हम उनके नारों में रहा करते है ॥

नफरत की इस आंधी के थपेड़ो मे ।
अपने अस्तित्व का अंश ढूँढ़ते नज़र आते है ॥