Tuesday, December 11, 2012

waqt

वक़्त  धूप -छाँव  हैं,
नित  नया  अहसास  हैं।
वक्त  कैनवास  हैं,
नित  नये  रंगों  की  बोछार  हैं।
वक़्त  जादूगरी  हैं,
नित  नए  अजूबों  की  राह  है
वक़्त  एक  सवाल  हैं,
नित  हम  ढूंढ़ते  जवाब  हैं।
वक्त  रेत  हैं, वक्त पानी  हैं,
वक़्त  बहती  हवा  हैं।
नित  इसे  रोकने  का  करते  हम
असफल  प्रयास  हैं।

Saturday, August 18, 2012

Teri Yaad

इतना  याद  किया  इस  दिल  ने  तुझको की,
तेरी  याद  इस  दिल  मे  नासुर  बन  कर  रह  गयी.
ना  निकालते  बनता  हे, ना  रखते  बनता  हे.
हर  पल  इस  दर्द  के  साथ  जीना  पड़ता  हे.

Friday, May 4, 2012

Ganga ki pukaar

जभी  दिल  पर  बढ़  जाता  हैं पाप  का  बोझ,
चल  पड़ते  हैं  सभी  गंगा  की  और.
सोचा  मैंने  भी  जाऊं  मैं  वहां, जहाँ  जाते  हैं  सभी,
जीते जी  या  फिर  कर  के  देह  को  त्याग.
ज्यूँ  ही  पंहुचा .....ठिठक  गए  मेरे  कदम,
देख  के  एक  दृश्य  असामान्य.
एक  मोटी  सी  काली  स्याह  चादर  में,
लिपटी  थी  वो उज्जवल  पावन  लहर,
और  थे  उस  पर  छितरे  दूर -दूर  तक
इंसानी  ढाचों  के  अवशेष.
पास  जाके  सुना  तो एक  दबी  सी
आवाज़  आई.
हटा  दो ....हटा  दो....इस  चादर  को  मुझ  पर से
मैं  हूँ  तुम्हारी  जीवनदायिनी.

Wednesday, March 28, 2012

common man

This is my first attempt to write in english language.

we are strangers,
though we walk together.
being a part of this crowd,
sharing the same lane.
common man you are,
..and i am the same.

The thoughts we share,
the difficulties we face.
struggling in this so called
life maze,
finding a path for ourselves.
being a part of this crowd,
sharing the same lane.
common man you are,
and i am the same.

The hope and happiness,
despair and sadness.
weighing these all on life scale,
each and every day.
being a part of this crowd,
sharing the same lane.
common man you are,
and i am the same.

Monday, March 5, 2012

होली हैं

भर लो मुट्ठी मैं रंग अबीर और गुलाल।
हवा मैं बिखरावो इसे,सतरंगी बन जाए ये संसार।
ख़ुशी की फुहार से करदो सबको सरोबार।
भूल कर सारे गिले -शिकवे प्रेम से मिलो सबसे आप।
यही सन्देश देता हैं होली का यह त्यौहार।


Sunday, January 22, 2012


Thinking of what to write....

शहर से दूर गाँव में॥
एक प्यारा सा घर ॥

Few Sketches...

Wednesday, January 18, 2012

नींद या सुकून

एक बार फिर आपके समक्ष उपस्थित हूँ लेकर एक और रचना.
आज-कल भाग-दौड़ की जिंदगी मैं हमारे पास ना तो सुकून रहा हैं
और न ही वो नींद.....बस एक दौड़ ही रह गयी हैं जिंदगी मैं,जो हमारी
अंतिम सांस तक चलती रहेगी.


पलके बोझिल हैं,
आँखों में नींद नहीं।
नींद आये भी कैसे,
दिल में जो सुकून नहीं।
सुकून मिले भी क्यूँ,
क्यूंकि हर पल संघर्ष हैं।
संघर्ष भला कैसे छोडे।
आखिर जीवन एक दौड़ हैं।
दौड़ में रहना हैं आगे,
क्यूंकि पाने कई मुकाम हैं।
मुकाम पा भी लिए अगर,
...तो अडिग रहने का प्रयत्न हैं।
प्रयत्न सफल हो जाए,
जद्दोजहद हे साँसों की डोर से।
साँसों की डोर टूट जाए,
तो नींद और सुकून हैं।