कॉमनवेल्थ गेम्स की देखो,
क्या दुर्दशा हो रही है।
कभी पुल गिर रहे है,
कही छत टपक रही है,
तो कही सड़के धस रही है।
कॉमनवेल्थ गेम्स की देखो,
क्या दुर्दशा हो रही है।
कलमाड़ी की कार्य-कुशलता की,
कलई जो खुल गयी है।
फिर भी ऊँगली उठा कर वो अपनी,
दुसरो के दोष गिना रहे है ।
कॉमनवेल्थ गेम्स की देखो,
क्या दुर्दशा हो रही है।
पर्याप्त समय मिला था हमको,
पर देखो क्या तैयारिया हो रही है,
बद-इंतजामी की हर हद , अब पार हो रही है।
कॉमनवेल्थ गेम्स की देखो,
क्या दुर्दशा हो रही है।
हर जगह हमारे देश की,
थू -थू अब हो रही है ।
अगर आजाते होश मे पहले ही,
फजीहत न होती,जो अब हो रही है।
कॉमनवेल्थ गेम्स की देखो,
क्या दुर्दशा हो रही है।
Monday, September 27, 2010
Tuesday, September 14, 2010
वो बादल
खयालो की भाप से बने,
उमंगो और आशाओ के बादल।
ख्वाबो के आसमान में ठहरकर,
बरसेंगे खुशियों की बरसात बनकर ।
उमंगो और आशाओ के बादल।
ख्वाबो के आसमान में ठहरकर,
बरसेंगे खुशियों की बरसात बनकर ।
Friday, September 3, 2010
सरकारी नीतियां
कागजों पर ही शुरू होती हैं,
कागजों पर ही ख़त्म होती हैं ।
सरकारी नीतियां इसी तरह,
बनती और बिगडती हैं ।
होके फाईलो मे कैद,
रास्ता अपना खोजती हैं ।
सरकारी नीतियां इसी तरह,
बनती और बिगडती हैं ।
भूली बिसरी बात बनकर,
वक़्त की गर्त मे दबी रहती हैं।
सरकारी नीतियां इसी तरह,
बनती और बिगडती हैं ।
फिर दम तोड़ देती हैं एक दिन,
इतिहास बनके रहा करती हैं ।
सरकारी नीतियां इसी तरह,
बनती और बिगडती हैं।
कागजों पर ही शुरू होती हैं,
कागजों पर ही ख़त्म होती हैं।
सरकारी नीतियां इसी तरह,
बनती और बिगडती हैं ।
कागजों पर ही ख़त्म होती हैं ।
सरकारी नीतियां इसी तरह,
बनती और बिगडती हैं ।
होके फाईलो मे कैद,
रास्ता अपना खोजती हैं ।
सरकारी नीतियां इसी तरह,
बनती और बिगडती हैं ।
भूली बिसरी बात बनकर,
वक़्त की गर्त मे दबी रहती हैं।
सरकारी नीतियां इसी तरह,
बनती और बिगडती हैं ।
फिर दम तोड़ देती हैं एक दिन,
इतिहास बनके रहा करती हैं ।
सरकारी नीतियां इसी तरह,
बनती और बिगडती हैं।
कागजों पर ही शुरू होती हैं,
कागजों पर ही ख़त्म होती हैं।
सरकारी नीतियां इसी तरह,
बनती और बिगडती हैं ।
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