वक़्त की सख्त मार ने,
हालत कुछ इस तरह बदल दिए,
नर्म अहसास सीने के,
अब पत्थर बन कर रह गए।
हर गाँव, हर शहर की फिजाओं मे,
हवाएं घुली हुई हैं दुनियादारी की,
मतलब नहीं रहा जब किसी से तो,
मुंह फेर कर सब चल दिए।
नर्म अहसास सीने के,
अब पत्थर बन कर रह गए ।
इंसान को मशीन बनाने के,
कारखाने खुले हुए हैं बहुत यहाँ ,
नज़रे उठा कर जहाँ भी देखो,
हर जगह बेजान ढाँचे चल रहे।
नर्म अहसास सीने के,
अब पत्थर बन कर रह गए ।
Thursday, October 14, 2010
Subscribe to:
Posts (Atom)