Wednesday, November 30, 2011

घर

आज बहुत समय के बाद आप सभी के समक्ष उपस्थित हूँ,
एक और रचना के साथ..पर ये रचना मेरी नहीं मेरे छोटे भाई
की हैं ..वो भी लिखते हैं ..पर इन दिनों व्यस्तता के चलते लिख नहीं
पाते हैं ....आज उनकी बहुत पहले लिखी कविता आप सभी के साथ
बांटना चाहती हूँ । मुझे पूरी उम्मीद हैं आपको ये कविता जरुर पसंद
आएगी ।
दो अक्षर का मेल हैं घर,
परिवार के लोगों का मिलन हैं घर।
सुख और शान्ति जहाँ मिले,
उस जगह का नाम हैं घर ।
थक कर जहाँ मिले आराम,
वह कहलाता हैं घर ।

घर नहीं केवल एक मकान,
नहीं ईंट और मिटटी से बनी ईमारत शानदार।
राजा का महल नहीं,
ना गरीब की कुटीया हैं घर,
तो फिर घर क्या हैं ?

जहाँ परिवार के साथ रह पाए ,
सुख -दुःख एक दुसरे के बांटते जाए।
जिससे हम न रह सके दूर,
जिसके बिना न रहे आँखों मैं नूर ।
उस स्वर्ग का नाम हैं घर।

चलो इस दुनिया को घर बनाये,
हिंसा को इस जग से हटाये।
भाई -भाई की तरह गले मिल जाए,
चेहरे पे सबके खुशियाँ लौटा लाये।