Wednesday, June 5, 2013

अपने  को  तलाशते  हुए,
विचारों  के  आवरण  को  धारे  हुए।
चला  जाता  हैं  मुसाफिर  राहों  का,
मंजिलों  को  पाते  हुए।

तारों  की  झिल-मिल मशाल  हाथों  मे  ले,
दिन  का  उजियारा  हो  सीने में,
काटेगा  वो अंधियारी  रात,
अपने  अदम्य  साहस  से।

हवाओं  का  वेग  हो  तन में
बिजली  की  गति  को  कदम में
नए  सर्जन  की  नींव  रखेगा 
वो  कठिन  श्रम  से।

नवीन  सोच  के  बीज  हाथों  मे  ले,
पुरानी  जड़ों  को  काटके,
क्रान्ति  की  नयी  फसल  उगाएगा,
नए  दृष्टिकोण  के  साथ में।

चला  जाता  है मुसाफिर  राहों  का,
मंजिलों  को  पाते  हुए।

Friday, March 8, 2013

Aurat

सब कुछ बाँट दिया मैंने अपना.... हर एक रिश्ते में...
शायद बचा हो कुछ मेरे लिए भी इस जीवन के खाते में.