Thursday, January 28, 2010

टेलीविजन की दुनिया उफ़ यह हंगामे

शुरुआत में हमारे पास मनोरंजन का एकमात्र साधन था और वो था दिल्ली दूरदर्शन से प्रसारित होने वाले कार्यक्राम । उस वक़्त कोई और विकल्प भी नहीं था , तो , वो ही हमारे मनोरंजन का सहारा बना।
धीरे -धीरे समय बदला और देश में मनोरंजन के क्षेत्र में नयी क्रान्ति आयी । दौर आया प्राइवेट चैनलों का । जिसकी शुरुआत हुई जी टी वी से , उसके बाद तो जैसे सैलाब ही उमड़ पड़ा हो प्राइवेट चैनलों का, इंटरटेनमेंट चैनल हो या फिर न्यूज़ चैनल । हमारे मनोरंजन का दायरा बढ़ता गया । पहले फिल्मे और धारावाहिक दिखाये जाने लगे , बाद में रिअलिटी शो भी आने लगे । रिअलिटी शो के साथ शुरू हुए हंगामे। इन सब चीजो से उस समय मैं बड़ी अनजान थी ।
इसका सबसे पहला अनुभव मेरा सन १९९३ मैं हुआ । जी टी वी पर एक परिचर्चा पर आधारित कार्यक्रम की शुरुआत हुई जिसका नाम था ' चक्रव्यूह ' और इस कार्यक्रम का संचालन जाने -माने पत्रकार विनोद दुआ जी करते थे ।
एक बार डॉक्टरस के उपर एक परिचर्चा रखी गयी । पैनल पर चार पांच मेहमानों को बुलाया गया था , जिसमे से एक प्रसिद्ध हृदयरोग विशेषज्ञ थे जो एक जाने माने बॉलीवुड अभिनेता चंकी पांडे के पिताजी भी थे । परिचर्चा की शुरुआत तो शांत तरीके से हुई ,धीरे -धीरे परिचर्चा का दौर आगे बढ़ता गया ,स्टूडियो मैं बैठे श्रोतागण अपने विचार बता रहे थे । ज्यादातर श्रोताओ के अनुभव डॉक्टर के प्रति मधुर नहीं थे । लोगो के अनुभव सुनकर वो बॉलीवुड अभिनेता के पिताजी नाराज़ हो गए ,चेहरा क्रोध से लाल हो गया । आगे तो वो किसी की सुनना ही नहीं चाहते थे. और इस विवाद मैं उनका भरपूर साथ दिया पैनल मैं बैठे एक और मेहमान जो अहमदाबाद से आये थे । दोनों ने मिलकर माहौल को इतना गरमा दिया की बीच मैं ही कार्यक्रम को रोकना पड़ा । और वो दोनों मेहमान चिल्लाते हुए कार्यक्रम छोड़कर चले गए । आज वोह हृदयरोग विशेषज्ञ डॉक्टर इस दुनिया मैं नहीं है । भगवान् उनकी आत्मा को शान्ति प्रदान करे । अब तो टेलीवीजन की दुनिया में यह नज़ारे देखना आम बात हो गयी है । म्यूजिक शो सा रे गा मा पा में शुरुआत हुई थी संगीत के विश्व युद्ध की प्रथम ,द्वितीय शायद तृतीय भी हुआ था । मैंने तो संगीत का प्रथम विश्व युद्ध देखा सच पूछो तो प्रतियोगियों का आपस मैं युद्ध नहीं था , पर उन प्रतियोगियों ,को जो जज करने आये संगीत के क्षेत्र के महारथियों का आपस में जरुर वाद -विवाद होता रहता था , तमाशा ही तमाशा होता रहता था । और किसी रिअलिटी शो में प्रतियोगी रो -रो कर आंसुओ का समंदर तैयार कर देते हे । जिसको देखकर मैं यही कह सकती हु "यह कैसा ईमोशनल अत्याचार है"। खुदा बचाए ऐसे टेलीविजन की दुनिया से और उफ़ यह हंगामे से ।

No comments:

Post a Comment