Wednesday, January 18, 2012

नींद या सुकून

एक बार फिर आपके समक्ष उपस्थित हूँ लेकर एक और रचना.
आज-कल भाग-दौड़ की जिंदगी मैं हमारे पास ना तो सुकून रहा हैं
और न ही वो नींद.....बस एक दौड़ ही रह गयी हैं जिंदगी मैं,जो हमारी
अंतिम सांस तक चलती रहेगी.


पलके बोझिल हैं,
आँखों में नींद नहीं।
नींद आये भी कैसे,
दिल में जो सुकून नहीं।
सुकून मिले भी क्यूँ,
क्यूंकि हर पल संघर्ष हैं।
संघर्ष भला कैसे छोडे।
आखिर जीवन एक दौड़ हैं।
दौड़ में रहना हैं आगे,
क्यूंकि पाने कई मुकाम हैं।
मुकाम पा भी लिए अगर,
...तो अडिग रहने का प्रयत्न हैं।
प्रयत्न सफल हो जाए,
जद्दोजहद हे साँसों की डोर से।
साँसों की डोर टूट जाए,
तो नींद और सुकून हैं।

7 comments:

  1. बहुत सही और अच्छा लिखा है आपने।


    सादर

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  2. कल 20/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  3. बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  4. बहुत बढ़िया ...गहरे भाव ...

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  5. जब तक साँसों की डोर नहीं टूटती तब तक ज़द्दोज़हद जारी रहता है .. यही संघर्ष ही बताता है की जीवन है .. बहुत अच्छी रचना

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  6. सुकून और कायदे से नींद तो अब शायद तभी आयेगी !! सही कहा!

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  7. साँसों की डोर टूट जाए,
    तो नींद और सुकून हैं। ...wah kya gahri baat kahi hai

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