Monday, February 7, 2011

अरमान

सीने मैं जब्त कर रखे हैं,
अरमान कई मैंने अपने।
जुबा खोल दू तो ये,
कही खाक मैं मिल न जाये।
जमाना जान जाता हैं कैसे,
बंद जुबा की ये बातें।
नश्तर चुभो -चुभो कर इसे,
घायल ही करता जाये।
दिल के किसी तह मैं,
छुपा लिया हैं इसको मैंने ।
मासूम सी यह चाह मेरी,
कही टूट कर बिखर ना जाये।

6 comments:

  1. लगता है कलम तोड़ कर लिखा है आपने.बहुत दिन बाद मगर बेहतरीन.

    सादर

    ReplyDelete
  2. बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति...बहुत सुन्दर

    ReplyDelete
  3. बहुत सुंदर जी धन्यवाद

    ReplyDelete
  4. Afsos, jo armaan hote hain wo kisi na kisi roop mein jahir ho hi jate hain, aur log itne bure hain ki puchiye hi mat...
    mera lekh padhne ke liye shukria sheetal ji, "Sampatti par samaan adhikaar", bhi ek utopia hi toh hai, main aisa chahta hun, aap aisa chahti hain, umeed hai baki log bhi ek din aisa hi chayenge aur phir ise "utopia" kehne ki aur jyada jaroorat nahi reh jayegi, kyonki uss din uss subah yeh sach ban chuka hoga... :)

    ReplyDelete
  5. नमस्कार...
    दिल में जो भी अरमान तेरे...
    उनको दिल में रहने देना...
    कहना न तुम दिल की बातें...
    न ही किसी को कहने देना...
    सुन्दर कविता..

    Deepak...

    ReplyDelete