Monday, December 27, 2010

जिंदगी के आईने से,
हटाके वक़्त की गर्त ।
देखा जो हमने सामने,
अपने बीते लम्हों का अक्स ।
चाहा नहीं था जिसे देखना,
आगया वो हमें नज़र।
दरकते हुए कई ख्वाबो का,
एक खामोश सा मंजर।

5 comments:

  1. बहुत खूब लिखा आपने बहुत दिनों के बाद.

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  2. दरकते हुए कई ख्वाबो का,
    एक खामोश सा मंजर।

    बहुत खूब ...दर्द भी है खूबसूरती भी

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  3. Happy new year, sheetal ji...

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  4. विद्रोही जी के ऊपर कुछ लोग एक फिल्‍म बना रहे हैं, मुझे यह लिंक मिला तो आपको भेज रहा हूं, मुझे तो ट्रेलर पसंद आया-
    http://www.blip.tv/file/4606567

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