Tuesday, August 10, 2010

लिख -लिख कर अहसास अपने,
मैं मिटा दिया करती हूँ ।
दिल की इस स्लेट पर से,
सारे ख्वाब हटा दिया करती हूँ ।
आंसूओ से फिर धो कर इसे,
हकीकत की हवा मैं सूखा दिया करती हूँ ।

5 comments:

  1. शीतल जी...

    दिल की स्लेट पे लिख के मिटायें...
    न ऐसे अहसासों को...
    अपने अंतर में रहने दें...
    भूले बिसरे ख्वाबों को...
    जाने कब कोई आ जाए...
    रहने फिर से संग...
    ख्वाबों का जीवन से होता...
    ऐसा ही सम्बन्ध...

    सुन्दर भाव...

    दीपक...

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  2. वाह वाह क्या बात है! सुन्दर भाव के साथ शानदार और ज़बरदस्त लिखा है आपने! बधाई!

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  3. सुंदरतम अभिव्यक्ति। सादर।।

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  4. दिल की इस स्लेट पर से,
    सारे ख्वाब हटा दिया करती हूँ ।

    bahut sundar......

    Meri Nayi Kavita par aapke Comments ka intzar rahega.....

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  5. yu likh-likh kar aap ahsas jaga diya karti hai...bahut hi sundar ..wah!!

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