लिख -लिख कर अहसास अपने, मैं मिटा दिया करती हूँ । दिल की इस स्लेट पर से, सारे ख्वाब हटा दिया करती हूँ । आंसूओ से फिर धो कर इसे, हकीकत की हवा मैं सूखा दिया करती हूँ ।
दिल की स्लेट पे लिख के मिटायें... न ऐसे अहसासों को... अपने अंतर में रहने दें... भूले बिसरे ख्वाबों को... जाने कब कोई आ जाए... रहने फिर से संग... ख्वाबों का जीवन से होता... ऐसा ही सम्बन्ध...
शीतल जी...
ReplyDeleteदिल की स्लेट पे लिख के मिटायें...
न ऐसे अहसासों को...
अपने अंतर में रहने दें...
भूले बिसरे ख्वाबों को...
जाने कब कोई आ जाए...
रहने फिर से संग...
ख्वाबों का जीवन से होता...
ऐसा ही सम्बन्ध...
सुन्दर भाव...
दीपक...
वाह वाह क्या बात है! सुन्दर भाव के साथ शानदार और ज़बरदस्त लिखा है आपने! बधाई!
ReplyDeleteसुंदरतम अभिव्यक्ति। सादर।।
ReplyDeleteदिल की इस स्लेट पर से,
ReplyDeleteसारे ख्वाब हटा दिया करती हूँ ।
bahut sundar......
Meri Nayi Kavita par aapke Comments ka intzar rahega.....
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yu likh-likh kar aap ahsas jaga diya karti hai...bahut hi sundar ..wah!!
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