Monday, May 24, 2010

एक ख्वाहिश [कविता ]

ख्वाहिश हे मेरी, बेफिक्र,बैखोफ होके घर से निकलू मैं ।
ना मंडराए साए, हम पे आतंकी हमलो के ॥
ख्वाहिश हे मेरी, देश के नेता, काम करे समझदारी से ।
ना बांटे देश को, भाषा, धर्म, जाति के नाम पे ॥
ख्वाहिश हे मेरी, बच्चो के कंधो से किताबो का बोझ कम हो ।
अब तो शिक्षा प्रणाली, हमारी दुरुस्त हो ॥
ख्वाहिश हे मेरी, ना बहे आंसू बढती चीजों के दाम से ।
अब तो रोक लगे, हद पार करती महंगाई पे ॥
ख्वाहिश हे मेरी, निहारु सितारों भरा आसमान मैं ।
ना कैद करो इसे, धुल और धुए की चादर मे ॥
ख्वाहिश हे मेरी, चारो और अमन और चैन की बंसी बजे ।
आओ सब मिलकर, एकता की लय को मजबूत करे ॥

8 comments:

  1. Hi..

    Meri khwahish bhi aisi hi,
    jaisi tumne batlaayi...
    Halat badle desh ki mere,
    nayi subah hai fir aayi..

    Azaadi ki Swarn jayanti,
    hum to mana ke baithe hain,
    par azaadi ka jo matlab..
    janta samajh nahi payi...

    Unnati ke sopan milen,
    desh main sab khushhaal rahen..
    yahi humari dua hai dil se..
    yahi prarthna nit gayi...

    Sundar Kavita...

    Deepak...

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  2. आपने हर एक की ख्वाहिश को शब्द दिए हैं...बधाई

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  3. in khwahisoon pe qurbaan jaawaan

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  4. Word verification ka jhanjhat khatam kar deejiye.. comment mien asani hogi

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  5. बहुत ही सुन्दर और लाजवाब रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ है! बधाई!

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  6. ख्वाहिश हे मेरी, बच्चो के कंधो से किताबो का बोझ कम हो ।
    ख्वाहिशे वाजिब हैं, मिलजुलकर कुछ करना होगा.
    बहुत सुन्दर रचना

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  7. जिन्दगी से जुड़ी वे तमाम बातें जरूरी हैं जिनका होना हमारी जरूरत है
    अच्छी सोच

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  8. khwaishein yahan kab kiski poori hui hai...
    khwaishein kuch rakhu aisi ab khwaish hi nahi hai!!

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