बेगुन्हा लाशों को कंधे पर डाले ।
चले है राम और खुदा उन्हें दफनाने ॥
मंदिर , मस्जिद आशियाँ हुआ करते थे ।
आज भटक रहे है वीरानो में ॥
दिल से निकाल फेंका है लोगों ने हमको ।
अब तो हम उनके नारों में रहा करते है ॥
नफरत की इस आंधी के थपेड़ो मे ।
अपने अस्तित्व का अंश ढूँढ़ते नज़र आते है ॥