आदर्शवादी होने का दम हैं भरते,
आदर्शो का ढोल हैं पीटते।
किन आदर्शो की राह पर चलकर,
कैसे -कैसे आदर्श घोटाले करते।
खेल धोखेधडी और स्वार्थ का खेलते,
खेल,खेल की भावनाओ से खेलते।
अब खेल होता हैं खत्म तुम्हारा,
अब बेकार की सफाई , क्यूँ देते फिरते।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
बिलकुल सही बात कही है आपने महज दिखावटी आदर्शों पर चलने से खुछ नहीं होगा उनको व्यवहार में लाना भी होगा और अगर वास्तव में ऐसा हो गया तो भ्रष्टाचार और घोटालों का नामो निशाँ ही मिट जाएगा;लेकिन फिलहाल ऐसा होता नहीं दिख रहा.
ReplyDeleteaadarshvad sach mein ab kewal dikhwabhar hai... jis tarah se ghootale aaj sare aam hote hai uska khamiyaja sabse jyada aam log bhugtte hai....
ReplyDelete..ek saarthak sandesh deti rachna..aabhar
एक सटीक और प्रभावी अभिव्यक्ति.... यही तो हो रहा है....
ReplyDelete