Saturday, August 14, 2010

आज़ादी का जश्न

आज़ादी का जश्न मनाते हो।
क्या सच मे जश्न मनाने की बात है ?

कही जलता है चूल्हा,कही होता है फाका।
अनाज चाहे पड़ा सड़ता रहे,
दाने -दाने को तरसता है इन्सान।
फिर भी हम नारे लगाते है,
'मेरा भारत महान'।
आज़ादी का जश्न मनाते हो।
क्या सच मे जश्न मनाने की बात है?

कोई रहता आलिशान मकान मे।
कोई तंगहाल बस्ती मे।
आसमान के तले कोई बसाता अपना जहां।
फिर भी हम नारे लगाते है,
'मेरा भारत महान'।
आज़ादी का जश्न मनाते हो।
क्या सच मे जश्न मनाने की बात है ?

ताकतवर अयोग्य पाते है ऊंचा मुकाम।
योग्य आम आदमी रह जाता है मूंह ताक ।
बेरोज़गारी के इस आलम की क्या कहे बात।
फिर भी हम नारे लगाते हे,
'मेरा भारत महान'।
आज़ादी का जश्न मनाते हो,
क्या सच मे जश्न मनाने की बात हे?

कही बिजली की चकाचोंध ।
कही टिम-टिम करती जलती लालटेन ।
तो कही दिन और रात होते हे एक समान ।
फिर भी हम नारे लगाते हे,
'मेरा भारत महान'।
आज़ादी का जश्न मनाते हो।
क्या सच मे जश्न मनाने की बात हे ?

घूसखोरी,भ्रष्टाचार,बेईमानी का दीमक,
इन्सान को अब रहा खा ।
कहाँ करे जनता अब अपनी फरियाद ।
फिर भी हम नारे लगाते हे ,
'मेरा भारत महान'।
आज़ादी का जश्न मनाते हो।
क्या सच मे जश्न मनाने की बात हे?






8 comments:

  1. घूसखोरी,भ्रष्टाचार,बेईमानी का दीमक,
    इन्सान को अब रहा खा ।
    कहाँ करे जनता अब अपनी फरियाद ।
    ... बहुत सुन्दर व भावपूर्ण अभिव्यक्ति, बधाई !!!

    ReplyDelete
  2. इन सवालों के प्रति सजग रह कर ही हमें किसी जश्‍न का अधिकार मिलता है.

    ReplyDelete
  3. सुन्दर अभिव्यक्ति.

    ReplyDelete
  4. बहुत सीधा कटाक्ष। कुछ दोस्‍तों की याद हो आई, जो शाम का इंतजार कर रहे थे जिससे जश्‍न मनाया जा सके।
    इन्हे किसी की परवाह क्यों होने लगी, जब इनके घर में किसी सुविधा की कमी नहीं है, सच्ची आजादी तो शायद इसी वर्ग को मिली है।

    ReplyDelete
  5. रक्षाबंधन पर हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें!

    ReplyDelete
  6. sahi mein aapne ....gaur karne wali bate kah di ki wakyai aakhir hum kya mana rahe hai?

    apka post bahut achha laga shital ji!
    .............rakshabandhan par aapko hardik shubhkamnaye deta hoo!

    ReplyDelete
  7. विचारणीय ..लेकिन जश्न का मौका है तो मनाना तो चाहिए ..

    ReplyDelete
  8. शीतल जी...

    हर कमियां मंजूर हमें पर...
    आज़ादी फिर भी कायम है....
    और जिस दिन ये मौका आया...
    वोही जश्न का भी दिन है...

    इस दिन आओ भूल के सब कुछ...
    लें हम सब कुछ खुशियाँ बाँट...
    बेईमानी मक्कारी ने जो....
    लाये मन में झंझावात...

    बेहद विचारणीय सुन्दर कविता....

    दीपक...

    ReplyDelete