Friday, July 9, 2010

बचपन की गलियाँ .

बचपन की गलियों से हर कोई गुजरता है,
खुबसूरत इन राहों मे हर कोई विचरता है ।
जैसे -जैसे उम्र बढती चली जाती है,
यथार्थ की दुनिया मे हमें लिए जाती है।
अब तो बचपन ख्वाबो -ख्यालों मे बसा है,
यादों की किताबो मे इन लम्हों को संजोया है ।

4 comments:

  1. सच है...बचपन कि यादें आज भी साथ हैं..

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  2. बचपन के दिन भी क्या दिन थे.....
    सच में!

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  3. "अब तो बचपन ख्वाबो -ख्यालों मे बसा है,
    यादों की किताबो मे इन लम्हों को संजोया है......."
    kash mera bachpan bhi laut aata ..very nice post

    गौरतलब पर आज की पोस्ट पढ़े ... "काम एक पेड़ की तरह होता है."

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  4. बचपन के दिन भी क्या दिन थे....

    कुछ तो है इस कविता में, जो मन को छू गयी।

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