एक बार फिर आपके समक्ष उपस्थित हूँ लेकर एक और रचना.
आज-कल भाग-दौड़ की जिंदगी मैं हमारे पास ना तो सुकून रहा हैं
और न ही वो नींद.....बस एक दौड़ ही रह गयी हैं जिंदगी मैं,जो हमारी
अंतिम सांस तक चलती रहेगी.
पलके बोझिल हैं,
आँखों में नींद नहीं।
नींद आये भी कैसे,
दिल में जो सुकून नहीं।
सुकून मिले भी क्यूँ,
क्यूंकि हर पल संघर्ष हैं।
संघर्ष भला कैसे छोडे।
आखिर जीवन एक दौड़ हैं।
दौड़ में रहना हैं आगे,
क्यूंकि पाने कई मुकाम हैं।
मुकाम पा भी लिए अगर,
...तो अडिग रहने का प्रयत्न हैं।
प्रयत्न सफल हो जाए,
जद्दोजहद हे साँसों की डोर से।
साँसों की डोर टूट जाए,
तो नींद और सुकून हैं।
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बहुत सही और अच्छा लिखा है आपने।
ReplyDeleteसादर
कल 20/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ...गहरे भाव ...
ReplyDeleteजब तक साँसों की डोर नहीं टूटती तब तक ज़द्दोज़हद जारी रहता है .. यही संघर्ष ही बताता है की जीवन है .. बहुत अच्छी रचना
ReplyDeleteसुकून और कायदे से नींद तो अब शायद तभी आयेगी !! सही कहा!
ReplyDeleteसाँसों की डोर टूट जाए,
ReplyDeleteतो नींद और सुकून हैं। ...wah kya gahri baat kahi hai