Tuesday, July 20, 2010

मेरा मेरा करते हो,यहाँ कुछ भी तो अपना नहीं।
यह शरीर किराये का ढांचा है, और साँसे है उधार की ।

सब कुछ पाकर भी,न जाने क्या पाने की होड़ लगी है ।
बुझती नहीं है जो कभी,यह कैसी प्यास जगी है।
इस मृगतृष्णा का, हर कोई बना दीवाना है ।
यह शरीर किराए का ढांचा है, और साँसे है उधार की ।


दो गज ज़मी के नीचे ही,हमको दफन हो जाना है।
राख बन इस देह को, अब मिटटी मे मिल जाना है।
सब कुछ जानकार भी,इन्सान क्यूँ बना बेगाना है।
यह शरीर किराए का ढांचा है, और साँसे है उधार की।

मेरा मेरा करते हो, यहाँ कुछ भी तो अपना नहीं।
यह शरीर किराए का ढांचा है,और साँसे है उधार की ।

Friday, July 9, 2010

बचपन की गलियाँ .

बचपन की गलियों से हर कोई गुजरता है,
खुबसूरत इन राहों मे हर कोई विचरता है ।
जैसे -जैसे उम्र बढती चली जाती है,
यथार्थ की दुनिया मे हमें लिए जाती है।
अब तो बचपन ख्वाबो -ख्यालों मे बसा है,
यादों की किताबो मे इन लम्हों को संजोया है ।

Thursday, July 1, 2010

नौकरी की तलाश .

राह मे एक नौजवा से मुलाक़ात हो गयी,
बातो बातो मे उसकी कहानी पता चल गयी।
कहानी कोई नयी नहीं वही पुरानी ही थी,
उस नौजवा को एक अदद नौकरी की तलाश थी ।
आँखों मे चमक उसके दिल मे तमन्नाए हज़ार थी,
अपनी काबिलियत पर उसे नौकरी मिलने की आस थी ।
नौकरी की तलाश मे वो जहाँ -जहाँ जाता,
तारीफ़ अपनी काबिलियत की वो हर जगह पाता ।
पर अंत मे उससे एक ही सवाल पूछा जाता,
क्या किसी की सिफारिश है आपके पास ।
इसी तरह नौकरी की तलाश मे दिन बीतने लगे ,
पहले हफ्ते,महीने, फिर बरस बीत गए ।
अब वो नौजवा अखबार बेचने का काम कर रहा है,
और आज भी अपने लिए नौकरी की तलाश कर रहा है।