Monday, May 24, 2010

एक ख्वाहिश [कविता ]

ख्वाहिश हे मेरी, बेफिक्र,बैखोफ होके घर से निकलू मैं ।
ना मंडराए साए, हम पे आतंकी हमलो के ॥
ख्वाहिश हे मेरी, देश के नेता, काम करे समझदारी से ।
ना बांटे देश को, भाषा, धर्म, जाति के नाम पे ॥
ख्वाहिश हे मेरी, बच्चो के कंधो से किताबो का बोझ कम हो ।
अब तो शिक्षा प्रणाली, हमारी दुरुस्त हो ॥
ख्वाहिश हे मेरी, ना बहे आंसू बढती चीजों के दाम से ।
अब तो रोक लगे, हद पार करती महंगाई पे ॥
ख्वाहिश हे मेरी, निहारु सितारों भरा आसमान मैं ।
ना कैद करो इसे, धुल और धुए की चादर मे ॥
ख्वाहिश हे मेरी, चारो और अमन और चैन की बंसी बजे ।
आओ सब मिलकर, एकता की लय को मजबूत करे ॥

Monday, May 17, 2010

जो पतिदेव कहे [एक व्यंग गीत ]

यह व्यंग गीत, उन पतियों के नाम हे, जो अपने को बहुत कुछ और अपनी पत्नियों को कुछ समझते ही नहीं हे, हर वक़्त उनकी तानाशाही चलती रहती हे । इस गीत को मैंने " ॐ जय जगदीश हरे " आरती की तर्ज़ पर लिखा हे । उम्मीद करती हूँ,शायद आप को पसंद आये ।

जो पतिदेव कहे ......
तर्ज़ [ॐ जय जगदीश हरे ]

जो पतिदेव कहे, पतिदेव जो कहे ,
हर आज्ञा का पालन, हर आज्ञा का पालन,
पत्नी चुप-चाप करे।
जो पतिदेव कहे ..........

अर्धांगिनी का अर्थ, जो जान के भी ना जाने,
जो जान के भी ना जाने ।
बात -बात पर ताने, बात-बात पर ताने।
सीना छलनी करे॥
जो पतिदेव कहे ......
घुन और नारी दोनों, सिक्के के दो रूप,
अजी सिक्के के दो रूप ।
दो पाटो बीच पीसना, दो पाटो बीच पीसना।
नारी का जीवन ॥
जो पतिदेव कहे ......
पढ़ी लिखी शहरी , चाहे गाँव की हो गोरी,
चाहे गाँव की हो गोरी।
सदिया चाहे बदले, सदिया चाहे बदले ।
व्यथा वही पुरानी॥
जो पतिदेव कहे .......
हज़ारो मे होगी कोई, ऐसी किस्मतवाली,
हां ऐसी किस्मतवाली ।
जिसको पति माने, जिसको पति माने ।
सच्चा जीवन-साथी ॥
जो पतिदेव कहे, पतिदेव जो कहे ,
हर आज्ञा का पालन, हर आज्ञा का पालन ।
पत्नी चुप -चाप करे ॥

Tuesday, May 11, 2010

देश, राजनीति, राजनेता [कविता]

जहाँ धर्म के नाम पर उठता हे बवंडर।
जहाँ जात -पात के नाम पर होता हे अंतर।
ऐसी जगह को कहते हे लोकतंत्र ॥

शासन हे एक ऐसे आसन का नाम ।
अनीति का होता जहाँ निरंतर अभ्यास ।
ऐसे योगासन को मिलता हे राजनीति का नाम ॥

शब्दों का जो रचते हे मायाजाल ।
मीठी छुरी से जो जनता को करते हे हलाल ।
ऐसे अभिनेता को दिया जाता हे राजनेता का नाम ॥

Saturday, May 8, 2010

रिश्ते [कविता]

रिश्तो की राह मे बेरुखी का सफ़र।
कब तक चले हम कहाँ है मंजिल॥
गिरगिट को भी इंसान कर रहे है मात ।
हर पल बदलते रंगों की दे रहे है सौगात ॥
जाने क्यूँ मन मायूसी से घिरा जाता है ।
रिश्तो पर से विश्वास अब उठता चला जाता है ॥

Sunday, May 2, 2010




हेल्लो दोस्तों


कैसे हो? आज मैंने एक free hand drawing बनाई|fill it with your colors and share it! :) देखते हम सब किस किस रंग में सोचते है|