Thursday, March 25, 2010

नींद और सुकून. [कविता ]

पलके बोझिल है ,
आँखों मे नींद नहीं ।
नींद आये भी कैसे ,
दिल में जो सुकून नहीं ।
सुकून मिले भी क्यूँ ,
क्यूंकि हर-पल संघर्ष है ।
संघर्ष भला कैसे छोड़े ,
आखिर जीवन एक दौड़ है ।
दौड़ मे रहना है आगे ,
चूँकि पाने कई मुकाम है ।
मुकाम पा भी लिए अगर ,
तो अडिग रहने का प्रयत्न है ।
प्रयत्न सफल हो जाए ,
जद्दोजहद है साँसों की डोर से ।
साँसों की डोर टूट जाए ,
तो नींद और सुकून है ।

किसी के पास आज -कल वक़्त बचा ही कहाँ है , जो यह सोचे की हमें क्या चाहिए , क्यूँ हम दौड़ रहे है । जिन्दगी बड़ी छोटी है कुछ पल अपने लिए और अपनों के लिए निकाले । मैंने इस अहसास को अलफ़ाज़ देने की एक छोटी सी कोशिश की है । आप लोगो को मेरा यह प्रयास कैसा लगा बताईयेगा