Friday, June 25, 2010

मन का पंछी .

मन का पंछी विचारो की भूल -भूलैया मे,
सदा यू ही भटका फिरा ।
रिवाजो की बंदिशों मे ही,
अपने आप को जकड़ा रहा।
लाख पंख फडफड़ाये तो भी,
रास्ता नहीं कोई सूझ रहा।
समझोते की दीवार को ले,
ख़ामोशी से टिका रहा ।

1 comment:

  1. "बहुत अच्छा-सा लिखा आपने..."

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